“ मां , अम्मा , मम्मी , माता या कुछ और ” शब्द अलग पर भाव एक हैं मां ईश्वर की वो भेंट है जिसके बिना हर बच्चे का जीवन सुखी पेड़ की तरह र्निजन है माताओं को समर्पित इस दिन के शुभ अवसर पर हम सभी माताओं को ये कविता समर्पित करते हैं व उन्हें सादर प्रणाम करते हैं।
नाम नहीं है जिसका कोई
ममता की वह मूरत है
प्यार से देखो तो एक बार
देखो कितनी खूबसूरत है
मां है वो मेरी
या अम्मा उसे बुलाउ
भर भर कर प्यार लुटाए है वो
जब भी देखे हस के खिल जाऊं
किया जब भी ज्यादा किया है
सब कुछ मेरे ऊपर वार दिया है
अब मैं उसे क्या कहूं
जिस ने मुझे सब कुछ दिया है
प्रभु से यह करता गुजारिश
क्या मैं तुझे दे पाऊंगा
तु हमेशा खुश रहे
इसी प्रार्थना को अपनाउगा
पर अपनी खुशी को तु
मुझपे ही लुटा देगी
जो भी पकवान दु
मुझे ही खिला देगी
तूम ही मेरी दुनिया हो
तुम ही मेरी सब कुछ
दिया तुमने मुझे जितना
मैं ना दे पाऊंगा कुछ
मेरे जीवन की हर एक मोड़ पर
यही एक कहानी है
तु जब भी साथ हो मेरे
खुशहाल ये जिंदगानी है
आएगी कोई भी दिक्कत या मुसीबत
मुझे कैसे सताएगी
मेरी मां है मेरे साथ
मुझे छू भी कैसे पाएंगी
मां का बोलना भी अमृत हैं
मां का कहा होये ईश्वर वानी
मेरे हर मुसीबत में मुझसे कहती
मेरे पुत्र टल जाएगी सारी परेशानी
मनुष्य नहीं वह अद्भुत है
उसमें मिलता हर सुख है
क्यों एक दिन साल में
उसके लिए तो हजार वर्ष भी ना कुछ है
प्रेम की वह मूरत है
हर व्यक्ति के दिल में मां की सूरत है
मां एक शब्द नहीं
एक पूरा जहान है
ममता की डोर को माना गया
दुनिया में सबसे महान है
पुत्र हूं मैं तेरा
यही मेरा स्वाभिमान है
ममता की छांव मुझको दी
आपको सादर प्रणाम है
आपको सादर प्रणाम है .......
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