छत्तीसगढ़ के त्यौहार , उत्सव , मेले व स्वादिष्ट पकवान व व्यंजन Art and Culture of Chhattisgarh Part : 2 भाग - दो
विश्व प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ की लोक कला एवं संस्कृति छत्तीसगढ़ के आम जनजीवन का एक अभिन्न अंग है यह लेख “ छत्तीसगढ़ के त्यौहार , उत्सव , मेले व स्वादिष्ट पकवान व व्यंजन Art and Culture of Chhattisgarh Part : 2 भाग - दो ” छत्तीसगढ़ के कला संस्कृति के वर्णन का भाग 2 है आप छत्तीसगढ़ की कला व संस्कृति पर क्लिक कर कर इसके लेख भाग 1 को पढ़ सकते हैं। इस लेख में छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम से मनाए जाने वाले विभिन्न उत्सवों , प्रमुख मेलों व आयोजनों और स्वादिष्ट पकवानों के बारे में जानकारी दी गई है।
छत्तीसगढ़ के उत्सव
भारत विभिन्न त्योहारों का देश है जहां अलग-अलग समय और ऋतुओं के अनुसार विभिन्न त्योहार मनाए जाते हैं इसके पीछे कई प्रमुख कारण है जिस प्रकार भारत में त्योहारों की विविधता है उसी प्रकार छत्तीसगढ़ में भी विभिन्न त्योहार मनाये जाते हैं।
छेरछेरा - छेरछेरा छत्तीसगढ़ के सबसे प्रमुख त्योंहारों में से एक है जो किसानी काम खत्म होने के बाद फसलों को अपने-अपने घर लाये जाने का प्रतीक है यह त्योहार पोष मास के पूर्णिमा को मनाया जाता है तथा इस त्योहार का अन्य नाम पूष पुन्नी भी है यह मुख्यता ग्रामीण क्षेत्रों में मनाया जाता है बच्चे घर घर जाकर " छेरछेरा छेरछेरा कोठी के धान ला हेर हेरा " कहकर अनाज मांगते हैं इसका अर्थ " अपने भंडार से धान निकालकर हमें दो। " है फिर घरवाले बच्चों को यह प्रदान करते हैं पूरे छत्तीसगढ़ में यह त्यौहार अत्यंत हर्षोल्लास और प्रसन्नता के साथ मनाया जाता है।
हरेली - हरेली का त्योहार श्रावण मास की अमावस्या को मनाया जाता है यह त्यौहार धान की बुवाई के बाद मनाया जाता है बरसात के मौसम के समय मनाये जाने के कारण इस त्यौहार में चारों तरफ हरियाली होती है इस त्यौहार में किसान अपने औजारों व उपकरणों की पूजा करते हैं व बच्चे गेड़ी बनाकर उसमें चलते हैं इस त्यौहार को छत्तीसगढ़ के प्रथम पर्व के रूप में भी मनाया जाता है व कई स्थानों पर नारियल फेंक प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है।
होली - होली का उत्सव पूरे भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है छत्तीसगढ़ मैं भी इसका अलग व बहुत महत्व है प्रत्येक शहरों व गांवों में हर्षोल्लास से होली का त्यौहार मनाया जाता है होली से एक रात पहले होलिका दहन का कार्यक्रम किया जाता है होली में सभी बड़े और बच्चे एक साथ मिलकर एक दूसरे को रंग गुलाल लगाकर नाच - गाकर इस त्यौहार को मनाते हैं। फागुन की होली सभी में एक अलग ही प्रकार का उत्साह भर देती है।
पोरा - पोरा या पोला छत्तीसगढ़ में मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध पर्व है इस दिन बैलों को सजा कर उनकी पूजा की जाती है घरों में विभिन्न प्रकार के व्यंजन जैसे ठेठरी , खुरमी आदि बनाए जाते हैं बच्चे मिट्टी के बैलों को सजाकर व खेल कर आनंद लेते हैं बैल दौड़ प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है पोरा भाद्र मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है।
भोजली - भोजली भाद्र मास कृष्ण पक्ष प्रथमा तिथि को मनाया जाता है यह रक्षाबंधन का दूसरा दिन है इस दिन का वह उस स्थान की सभी कुंवारी कन्याएं लगभग एक सप्ताह पूर्व बोये गए गेहूं के पौधे जिन्हें भोजली कहा जाता है को विसर्जित करती हैं भोजली विसर्जित करने के लिए सभी कन्याएं एक कतार में जाते हैं व गेहूं के तिनको को एक-दूसरे के कानों में खोचकर एक दूसरे को बधाइयां देते हैं इस दिन भोजली गीत गाए जाते हैं जिन्हें एक प्रसिद्ध गीत " ओ देवी गंगा , लहर तुरंगा " प्रचलित है।
नाग पंचमी - नाग पंचमी का त्योहार पूरे भारत में मनाया जाता है यह त्यौहार श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है इसी दिन जांजगीर चांपा के दलहा पहाड़ में मेले का आयोजन किया जाता है इस अवसर पर कुश्ती खेलों का भी आयोजन किया जाता है। इस दिन नाग व सर्पो की पूजा की जाती है।
तीजा ( हरितालिका ) - तीजा या हरितालिका में विवाहित महिलाएं व स्त्रियां अपने ससुराल से मायके जाती है महिलाएं रात में करूभात ( करेला सब्जी ) खाकर व्रत रखती है व इसके दूसरे दिन पूजा अर्चना कर अपना उपवास तोड़ती हैं इस त्यौहार में छत्तीसगढ़ में विभिन्न पकवान बनाए जाते हैं यह पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है।
दशहरा - दशहरा पूरे देश का एक प्रमुख त्योहार है इस दिन राम ने रावण का वध कर लंका पर विजय पाई थी जिस के प्रतीक के रूप में हम आज भी रावण के पुतले को जलाते हैं। इससे पहले नवरात्रि के नौ दिन सभी हर्षोल्लास से नवरात्रि मनाते हैं गरबे और डांडिये से वातावरण प्रफुल्लित हो उठता है अंतिम या दसवे दिन दशानन का दहन कर इस त्यौहार का समापन होता है दशहरे का छत्तीसगढ़ में भी काफी महत्व है कई स्थानों पर पुतला दहन के साथ-साथ मेले का भी आयोजन किया जाता है यह त्योहार काफी उत्साहपूर्वक व धूमधाम से मनाया जाता है।
ककसार - छत्तीसगढ़ राज्य की कला एवं संस्कृति अति समृद्ध यहां कई त्यौहार मनाया जाते हैं जिनमें से एक त्यौहार ककसार है यह त्यौहार अबूझमाड़िया आदिवासियों द्वारा मनाया जाता है इस पर्व में स्त्री व पुरुष अर्धवृत्त बनाकर अपने अपने अर्धवृत्त में सारी रात नृत्य करते हैं यह अविवाहित युवक युवतियों के लिए जीवनसाथी चुनने का भी अवसर होता है क्योंकि इसी पर्व मैं वैवाहिक संबंध स्थापित किए जाते हैं। बस्तर की मुड़िया जनजाति का पूजा नृत्य ककसार है। मुड़िया जनजाति के लोग मुड़िया गांव के धार्मिक स्थल में लिंगदेव को धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए सभी वाद्य यंत्रों के साथ रात भर नृत्य करते हैं इस नृत्य में महिलाएं विभिन्न झूलो और मोती की मालाएं पहनती है व पुरुष हाथ में छतरी लेकर , कमर में लोहे या पीतल की घंटियां बांधकर , सिर में सजावट करके नृत्य करते हैं। ककसारपाटा इस अवसर पर गाए जाने वाले गीत को कहते हैं।
मेघनाद पर्व - मेघनाथ पर्व गोंड आदिवासियों द्वारा मनाये जाने वाला प्रमुख पर्व है यह पर्व फाल्गुन माह में और कहीं कहीं चैत माह में मनाया जाता है ताकि अलग-अलग स्थानों में सभी की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। इस पर्व में मेघनाथ के प्रतीक के रूप में एक बड़ा सा ढांचा तैयार किया जाता है जिसमें 4 खंबे होते हैं इसके ऊपर एक तख्त होता है जिसमें एक छेद कर पुन: एक खंभा पर लगाया जाता है अतः इसमें 5 खंबे होते हैं यह इसलिए क्योंकि गोड आदिवासी समुदाय के लोगों द्वारा मेघनाथ को सर्वोच्च देवता माना जाता हैं इस पर्व में उस स्थान पर मेले का माहौल बन जाता है नृत्य एवं संगीत का क्रम स्वमेव निर्मित हो जाता है।
छत्तीसगढ़ में और भी कई पर्व मनाए जाते हैं जिनके नाम अरवा तीज , नवरात्रि , गोवर्धन पूजा , एकादशी या देव उठनी , गोवर्धन पूजा , देवारी , गौरा , बीज बोहानी , सरहुल , आमाखायी , चेतराई , लारूकाज , माटी पूजा , अक्षय तृतीया या अक्ति , मातर , करमा पर्व , नवान , गोंचा , रतौना , सकट , बीज बोहानी , हलषष्ठी , नवान्न आदि हैं ।
नाच - गान
विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा -
छत्तीसगढ़ का विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा विश्व का सबसे लंबा लोक पर्व है इसकी अवधि 75 दिन की होती है। श्रावण मास के हरेली अमावस्या से प्रारंभ होने वाले इस दशहरे में शामिल होने हेतु बड़ी संख्या में लोग बस्तर पहुंचते हैं इस दशहरे के कई पड़ाव व रस्म है जिनके पीछे अलग-अलग मान्यताएं हैं जैसे - पाठजात्रा , कछिनगादी , जोगी बिठाई , निशाजात्रा , मुरिया दरबार आदि । बस्तर दशहरा आम दशहरे से भिन्न है क्योंकि इसमें रावण दहन ना होकर 75 दिनों तक दंतेश्वरी एवं अन्य देवी - देवताओं की पूजा की जाती है और रथ यात्रा आकर्षण का मुख्य केंद्र होता है।बस्तर की रथ यात्रा जिसे खींचने हजारों की संख्या में लोग उमड़ते हैं आकर्षण का मुख्य केंद्र रहा है दो प्रकार के रथों को विभिन्न दिन चलाया जाता है फूल रथ जिसके चार पहिए होते हैं को फुल तिथि अनुसार 5 से 6 दिन चलाया जाता है और विजय रथ जिसके 8 चक्के होते हैं को दशहरा व उस के दूसरे दिन चलाया जाता है बस्तर दशहरे की शुरुआत सन् 1408 ईसवी के बाद चालुक्य वंश के राजा पुरुषोत्तम देव ने की थी आज भी यह दशहरा बस्तर के लोगों , आदिवासियों द्वारा शासन के सहयोग से मनाया जाता है पहले बस्तर दशहरे का खर्च राजा के द्वारा किया जाता था परंतु अब शासन के द्वारा व्यय किया जाता है। बस्तर दशहरा देखने दूर-दूर से लोग आते हैं यह बस्तर व उसके संस्कृति को एक अलग पहचान प्रदान करती है।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख मेले
मेले छत्तीसगढ़ की संस्कृति का एक अभिन्न अंग है जो सभी आम लोगों को आपस में जोड़ती है छत्तीसगढ़ में कई अवसरों जैसे कोई पर्व या त्यौहार , व्यापारिक महत्व , वार्षिक सम्मेलन , परंपरा , उत्सव या कोई मान्यता , कहानी होने पर मेले का आयोजन होता है छत्तीसगढ़ के कई मेले परंपरा अनुसार धार्मिक महत्व के होते हैं जिन्हें प्रतिवर्ष किसी खास त्यौहार या तिथि के दिन मनाया जाता है छत्तीसगढ़ के कुछ प्रमुख मेलों के बारे में विस्तारपूर्वक नीचे वर्णित है।
राजिम मेला - छत्तीसगढ़ का कुंभ राजिम माघी पुन्नी मेला छत्तीसगढ़ के सबसे प्रमुख मेलों में से एक है प्रतिवर्ष यहां हजारों लोग आते हैं वर्ष प्रतिवर्ष इस मेले में आने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। वर्तमान में यह मेला राजीवलोचन कुंभ के नाम से आयोजित किया जाता है। महानदी , पैरी और सोंढूर नदी के संगम में बसे इस मेले का विस्तार पंचक्रोशी क्षेत्र में कोपरा ( कोपेश्वर ) , पटेवा ( पटेश्वर ) , फिंगेश्वर तक होने के कारण मेले का माहौल शिवरात्रि तक बना रहता है।
समय : माघ पूर्णिमा
स्थान : राजिम , गरियाबंद
शिवरीनारायण मेला - छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिले के शिवरीनारायण जिसे मंदिरों का शहर भी कहा जाता है मे प्रतिवर्ष माघी पूर्णिमा से शिवरात्रि तक मेले का आयोजन होता है महानदी के तट पर स्थित इस नगर में मेले के समय काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं मान्यता है कि यही वह स्थान है जहां शबरी ने अपने जूठे बेर राम को खिलाए थे शिवरीनारायण जांजगीर - चांपा जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दक्षिण की ओर स्थित है।
समय : माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि
स्थान : शिवरीनारायण , जिला - जांजगीर चांपा
चंपारण मेला - चम्पारण मेला रायपुर के 55 किलोमीटर दूर पर आंरग पर जोंदा ग्राम में लगता है यह स्थान वल्लभ संप्रदाय के संस्थापक वल्लभाचार्य का जन्म स्थल भी है चम्पारण का मुख्य आकर्षण यहां का वार्षिक माघ पूर्णिमा मेला है जहां दूर-दूर से लोग आते हैं।
समय : माघ पूर्णिमा
स्थान : चम्पारण , जिला - रायपुर
पाली महोत्सव - पाली महोत्सव का आयोजन प्रतिवर्ष कोरबा के पाली में किया जाता है पाली में एक ऐतिहासिक और प्राचीन शिव मंदिर है प्रदेश एवं जिले की कला एवं संस्कृति से रूबरू कराने हेतु इस महोत्सव का आयोजन प्रतिवर्ष बड़े धूमधाम से किया जाता है।
समय : महाशिवरात्रि
स्थान : पाली , जिला - कोरबा
सिरपुर महोत्सव - सिरपुर मेला या महोत्सव का आयोजन प्रतिवर्ष सिरपुर में किया जाता है यह स्थान महासमुंद , रायपुर के मध्य महानदी के समीप स्थित है। प्रतिवर्ष इस मेले का आयोजन माघ पूर्णिमा से शिवरात्रि तक किया जाता है जहां दूर-दूर से लोग आते हैं।
समय : माघ पूर्णिमा से शिवरात्रि तक
स्थान : सिरपुर
मड़ई का मेला - मड़ाई मेला एक स्थान पर होने वाले मेले के आयोजन से अलग परंपरा के तहत अलग-अलग स्थानों में मनाया जाने वाला मेला है इसका आयोजन दिसंबर - जनवरी माह से प्रारंभ होता है। इस मेले का छत्तीसगढ़ में काफी महत्व है गांव के कोतवाल द्वारा हांका पारकर आम जनमानस को मड़ाई मेला हेतु आमंत्रण दिया जाता हैं अधिकांश गांवों में मड़ई मेला गोवर्धन पूजा से होली के मध्य किसी निश्चित दिन होना तय होता है। मंडई की रात्रि छत्तीसगढ़ के लोक नाट्य "नाचा" का कार्यक्रम होता है।
समय : दीपावली के पश्चात दिसंबर से फरवरी के मध्य
स्थान : बस्तर व अन्य क्षेत्र
छत्तीसगढ़ी भाषा
छत्तीसगढ़ के स्वादिष्ट पकवान व व्यंजन
छत्तीसगढ़ में विभिन्न आयोजनों जैसे शादी , छट्टी आदि और अलग-अलग त्यौहारों में स्वादिष्ट पकवान और व्यंजन बनाने की परंपरा है यह पकवान या व्यंजन छत्तीसगढ़ के पारंपरिक भी हो सकते हैं व आधुनिक भी। नीचे छत्तीसगढ़ के कुछ प्रमुख पकवानों और व्यंजनों का उल्लेख है जिसे आप विस्तार पूर्वक पढ़ सकते हैं।
सलौनी - मैदा से बना सलौनी खाने में काफी स्वादिष्ट होता है इसे प्रमुख अवसरों पर बनाया जाता है यह छत्तीसगढ़ के प्रमुख पकवानों में से एक हैं मैदा में मोवन मिला कर गुथने के पश्चात इसे आकृति देकर तेल में तला जाता है यह मीठे और नमकीन दोनों प्रकार के बनाये जा सकता है।
फरा - इसे चावल आटा से बनाया जाता है गुथने के पश्चात आकृति देकर इसे भाप में पकाया जाता है यह एक स्वादिष्ट व्यंजन है फरा को चटनी के साथ खाकर भी इसका लुत्फ उठाया जा सकता है।
अइरसा - अइरसा को बनाने के लिए चावल आटे को भिंगोकर फिर सुखाकर के पीसा जाता है इसके पश्चात इसे गुड़ की चाशनी में डालकर तेल में तला जाता है इस प्रकार यह मीठा और स्वादिष्ट व्यंजन तैयार होता है।
मालपुआ - मालपुआ चावल आटा और गुड़ को मिलाकर बनाया जाता है अन्य प्रदेशों में भी प्रचलित यह एक मीठा और स्वादिष्ट व्यंजन है।
बूंदी - बूंदी सभी को बहुत पसंद होते हैं इसके द्वारा लड्डू भी बनाए जा सकते हैं शुभ अवसरों में इसका प्रचलन अधिक है बूंदी नाश्ते व अतिथि के स्वागत में भी दिया जाता है मिक्सचर के साथ इसका स्वाद और भी बढ़ जाता है।
ठेठरी - बेसन द्वारा निर्मित ठेठरी छत्तीसगढ़ का प्रमुख पकवान है इसे बनाने के लिए लंबी एवं गोल आकृति बनाकर बेसन को तेल में तला जाता है।
खुरमी - खुरमी छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख व प्रसिद्ध मीठा व्यंजन है जिसे गेहूं और चावल के आटे के मिश्रण के द्वारा बनाया जाता है यह खास अवसरों जैसे पोला तीजा के दिन मनाया जाता है।
देहरौली - चावल आटे से बना हुआ यह पकवान रसगुल्ले के सामान है जिसे चाशनी में भिगोया जाता है इसका स्वाद मीठा होता है।
सोहारी - सोहारी व्यंजन पूरी ही है यह आटे के द्वारा बनाया जाता है यह मुख्यता शादी ब्याह , भोज , त्योहार , अतिथि संस्कार और अन्य शुभ अवसरों पर बनाया जाता है।
भजिया - बेसन से बने भजिये बहुत स्वादिष्ट होते है इन्हें कई प्रकार से बनाए जा सकते हैं और यह कई प्रकार के जैसे प्याज भजिया , आलू भजिया , मिर्ची भजिया और भाटा भजिया आदि होते है। यह पूरे भारत में प्रचलित पकवान है।
चीला - चीला छत्तीसगढ़ का पारंपरिक व्यंजन है जिसे यहां घर-घर में बनाया जाता है चावल के आटे में निश्चित मात्रा में पानी मिलाकर चावल आटे का घोल बना लिया जाता है फिर इसे तवे पर सेका जाता है चीले को विभिन्न अवसरों पर बनाया जाता है।
बरा - उड़द दाल द्वारा तैयार किया जाने वाला यह एक स्वादिष्ट व्यंजन है। इसे शादी - ब्याह , पितृ पक्ष आदि में बनाए जाने की विशेष मान्यता है।
चींटी की चटनी ( चापड़ा चटनी )
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में एक खास प्रकार की चटनी प्रसिद्ध है जिसे पूरे विश्व में जाना जाता है इसे लाल चींटी की चटनी कहा जा सकता है अपने नाम के ही अनुसार यह लाल चींटियों से बनी हुई होती है। इसे स्थानीय बोलचाल की भाषा में चापड़ा चटनी कहा जाता हैं बस्तर के पारंपरिक हाट सप्ताहिक बाजारों में यह उपलब्ध होती है इसे बनाने के लिए लाल चीटियों को जमा किया जाता है आदिवासियों द्वारा पूर्व से ही इसका उपयोग खानपान में किया जाता है उनका मानना है कि यह स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद है इसके अलावा ग्रामीण अंचलों मैं निवासरत आदिवासी तेज बुखार आने पर चीटियों के झुंड के पास जाते हैं और चीटियों के डंक से बुखार उतरने लगता है छत्तीसगढ़ की कला एवं संस्कृति और पारंपरिक पकवान में बस्तरिया व्यंजन एक अभिन्न अंग है जिसमें छत्तीसगढ़ के प्रमुख व्यंजन में इस चटनी का अपनी अलग पहचान व महत्व है आप इसे खाने के लिए बस्तर आ सकते है।छत्तीसगढ़ की कला एवं संस्कृति यहां के पकवान , त्योहार व मेले अति समृद्ध हैं छत्तीसगढ़ के प्रत्येक घर में बसे लोगों के भाव , कला संस्कृति से जुड़े प्रेम , आम जनों के द्वारा किए गए प्रयास व यत्न से ही यह त्यौहार व परंपरा जीवंत होती है।
भाग-1 पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
छत्तीसगढ़ की कला एवं संस्कृति भाग - 1
छत्तीसगढ़ की प्रमुख जानकारियां , शिक्षा
छत्तीसगढ़ का संपूर्ण इतिहास
छत्तीसगढ़ की कला एवं संस्कृति
छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थल और भूगोल
( अर्थव्यवस्था , जनसंख्या )
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