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छत्तीसगढ़ का संपूर्ण इतिहास , स्थापना Complete History of Chhattisgarh in Hindi

छत्तीसगढ़ राज्य के इतिहास का वर्णन

छत्तीसगढ़ राज्य का इतिहास अति वैभवशालीप्राचीन है जिसका विभिन्न प्रकार से उल्लेख किया जा सकता है यहां कई राजवंशों ने शासन किया और उस काल में यहां कई महलोंमंदिरों का निर्माण हुआ जिसके अवशेष हम आज भी देख सकते हैं प्राचीन रामायण काल से लेकर सन् 2000 को राज्य बनने तक इसका इतिहास अति विस्तृत है। जिसके बारे में नीचे सम्पूर्ण जानकारी दी गई है।

इतिहास के पन्नों की
यह अजब पहेली है
बीत गई है कब की
फिर भी हमसे कुछ कहती है।
कई आए कई गए
प्रमाणों की यह वाणी है
हम भी बीत जाएंगे एक दिन
सब की यही कहानी हैं।।

प्राचीन काल का छत्तीसगढ़ व इसके विभिन्न राजवंश

प्राचीन काल से ही छत्तीसगढ़ का इतिहास अति समृद्ध रहा है प्राचीन काल में इसका नाम दक्षिण कौशल था व इसी स्थान पर दंडकारण्य का विशाल वन फैला हुआ था। छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी नदी महानदी का प्राचीन नाम चित्रोत्पला था जिसका उल्लेख हमें विभिन्न प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। छत्तीसगढ़ की रामायण कालीन काल में भी काफी प्रसिद्ध थी जिसका उल्लेख हमें वाल्मीकि रामायण में मिलता है इसके विभिन्न भागों में दंडकारण्य का वन फैला हुआ था यहां के घने जंगलों पहाड़ों वनों और नदियों का भी काफी सुंदर वर्णन है माना जाता है कि उस काल में यहां विभिन्न ऋषियों और मुनियों का निवास था व राम ने अपने वनवास के दौरान यहां समय व्यतीत किया और महाभारत में भी इन स्थानों का वर्णन मिलता है।

इतिहास के प्राचीन उल्लेखो में से एक 639 ईस्वी में एक चीनी यात्री ह्मवेनसांग जो काफी प्रसिद्ध है ने उल्लेख किया है कि सिरपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी थी व बोधिसत्व नागार्जुन जो बौद्ध धर्म की महायान शाखा के संस्थापक थे का आश्रम भी सिरपुर (श्रीपुर) में ही स्थित था। उस काल में छत्तीसगढ़ पर सातवाहन राज वंश की एक शाखा का राज था। प्राचीन राजवंशों में से एक कल्चुरी वंश का शासन भी छत्तीसगढ़ में हुआ इन्हीं के शासन काल से यहां राजनीतिक इतिहास का प्रारंभ माना जाता है। इनकी छत्तीसगढ़ में दो शाखाएं रायपुर और रतनपुर हुए और ये शैव धर्म के संरक्षक थे इनके द्वारा 9वीं सदी तक शासन किया गया व कई ऐतिहासिक इमारतों का भी निर्माण करवाया गया था। गोंड जनजाति के राजवंश छत्तीसगढ़ के प्रमुख शासकों में से एक थे नवी शताब्दी तक संबलपुर के बड़े क्षेत्र और मध्य प्रांत के संपूर्ण पूर्वी भाग में गोंड साम्राज्य स्थापित हो चुका था आजादी के पहले छत्तीसगढ़ राज्य में आने वाली 14 रियासतों में से 4 रियासतें कवर्धा , रायगढ़ , सारनगढ और शक्ति गोंड रियासतें थी। इनके द्वारा श्रेष्ठ सौन्दर्यपरक संस्कृति भी विकसित की गई है। छत्तीसगढ़ पर सबसे अधिक शासन कलचुरी वंश द्वारा किया गया इसकी समय अवधि 875 ई. से 1741 ई. थी। प्राचीन काल से ही छत्तीसगढ़ पर विभिन्न कालों में विभिन्न राजवंशों का शासन था जिनमें प्रमुख मौर्य, सातवाहन, राजर्षितुल्य कुल, शरभपुरीय वंश, कल्चुरी, वकाटक, गुप्त, सोमवंश, नल वंश है इसके अलावा बस्तर के नल और नाग वंश, कांकेर के सोमवंश और कवर्धा के फणि-नाग वंश क्षेत्रीय राजवंशों में प्रसिद्ध थे। बिलासपुर जिले के पास कवर्धा रियासत के चौरा नामक मंदिर में सन् 1349 का एक शिलालेख हैं जिसमें नाग वंश की वंशावली है ये शिलालेख नाग वंश के राजा रामचंद्र ले खुदवाया था और इस वंश के प्रथम राजा अहिराज कहे जाते है इस वंश का राज चौदहवीं सदी तक भोरमदेव के क्षेत्र में स्थापित था।


अंग्रेज कालीन इतिहास

छत्तीसगढ़ भारत का वह राज्य है जिसने देश के हर क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान दिया है जिसमें महत्वपूर्ण है स्वतंत्रता संग्राम , भारत के अस्तित्व की लड़ाई जिसमें अंग्रेजी शासन के खिलाफ पूरे भारत ने एकजुट होकर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी थी। छत्तीसगढ़ के आदिवासियों द्वारा सन् 1818 में ही भारत के 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से भी पहले अबूझमाड़ इलाके में स्वतंत्रता आंदोलन किया गया जिसके नेतृत्वकर्ता गैंद सिंह जी थे। जब भी छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता संग्राम की बात होती है तब सोनाखान के वीर सपूत “वीरनारायण सिंह” का नाम जरूर आता है। इतिहासकारों के अनुसार 1856 में छत्तीसगढ़ में अकाल पड़ा आम जनों के लिए भोजन की समस्याओं हो गई आम जनता की दयनीय स्थिति देखकर सोनाखान के जमींदार वीर नारायण सिंह द्वारा उस समय के जमाखोर साहूकारों द्वारा जमा किए गए अनाज को लुट कर गरीबों में बांट दिया गया। जिसकी शिकायत ब्रिटिश सरकार से की गई। अंग्रेजों द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया पर ज्यादा दिन अंग्रेजी सरकार उन्हें कैद नहीं रख सकी और वे उनकी कैद से फरार होने में सफल हुए। इसके पश्चात वीर नारायण सिंह द्वारा अंग्रेजों के विरोध में एक सैन्य दल का निर्माण किया गया इसके बाद वीर नारायण सिंह के सैन्य दल द्वारा अंग्रेजी सरकार पर हमला कियाया गया पर कुछ बेईमान जमींदारों के कारण अंग्रेजी शासन वीर नारायण सिंह को गिरफ्तार करने में सफल रही। अंततः छत्तीसगढ़ के वीर सपूत को 10 दिसंबर 1857 को फांसी की सजा दी गई व वह सदा-सदा के लिए छत्तीसगढ़ की वीर गाथाओं में अमर हो गए।

सन् 1858 में वीरनारायण सिंह से प्रेरणा लेकर फौजी छावनी रायपुर के सैनिक हनुमान सिंह ने विद्रोह कर दिया और अपने दो साथियों के साथ मिलकर एक रेजीमेंट अधिकारी की हत्या कर दी थी ब्रिटिश शासन और विद्रोही सैनिकों के बीच 6 घंटे तक संघर्ष चलता रहा। ब्रिटिश शासन हनुमान सिंह को पकड़ने में असफल रही परंतु उनके 17 साथियों को गिरफ्तार कर फांसी दे दिया गया और अंग्रेजी सरकार द्वारा प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को दबा दिया गया। इसके बाद 1910 में बस्तर का भूमकाल आंदोलन छत्तीसगढ़ के आदिवासियों द्वारा किया गया सबसे बड़ा सशस्त्र आंदोलन था जिसने अंग्रेजी सत्ता को हिला कर रख दिया इस आंदोलन का ऐलान बस्तर में लाल कालेन्द्र सिंह और रानी सुमरन कुंवर द्वारा अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ किया गया था। इस विद्रोह के सेनापति गुण्डाधुर जी थे।

इसके अलावा छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय आंदोलनों का भी काफी प्रभाव रहा छत्तीसगढ़ में देश के अंदर चल रहे अन्य कई आंदोलनों , विद्रोहों और सत्याग्रह का भी विशेष रूप से प्रभाव पड़ा था छत्तीसगढ़ के आंदोलनों में विशेष रूप से तिलक और गांधी जी का प्रभाव रहा है अहिंसा और हिंसात्मक दोनों रूप से स्वतंत्रता की लड़ाईयां लड़ी गई है। छत्तीसगढ़ के इतिहास में केंडल नहर-जल सत्याग्रह ( धमतरी ) काफी महत्वपूर्ण है दरअसल अंग्रेजी शासन के तुगलकी फरमान के खिलाफ धमतरी जिले के गांव के किसानों ने जल सत्याग्रह किया जिससे अभिभूत होकर 21 दिसंबर 1920 को महात्मा गांधी जी इस आंदोलन में शामिल होने पहुंचे। गांधीजी के दोबारा 1933 में छत्तीसगढ़ आगमन के बाद छत्तीसगढ़ में चल रहे सभी स्वतंत्रता आंदोलन काफी तेज हो गए। प्रदेश में प्रमुख रूप से व्यक्तिगत सत्याग्रह, रायपुर का षड़यंत्र कांड और अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन चलता रहा जब भारत छोड़ो आंदोलन का आवाहन 1942 को किया गया तब पूरे छत्तीसगढ़ में एक साथ मिलकर इस आंदोलन के द्वारा अंग्रेजी हुकूमत का विरोध किया गया और इस प्रकार छत्तीसगढ़ में देश की स्वतंत्रता तक विभिन्न आंदोलन चलते रहे जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता है छत्तीसगढ़ के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी वीर नारायण सिंह , वीर गुण्डाधुर , गेंदसिंह , हनुमान सिंह , ई राघवेन्द्र राव , ठाकुर प्यारेलाल सिंह , घनश्याम सिंह गुप्त , डॉ. खूबचंद बघेल , पंडित माधव राव स्प्रे , बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव , रविशंकर शुक्ला , सुंदरलाल शर्मा , ठाकुर छेदीलाल , यति यतनलाल , पंडित देवीप्रसाद व्यास नरियरा आदि है और यहां के आंदोलन में अहम भूमिका मूलनिवासी आदिवासियों ने निभाया और इन वीरों व स्वतंत्रता सेनानियों के अथक प्रयास और बलिदान के कारण ही देश में स्वतंत्रता के सूरज का उदय हुआ और हमें आजादी मिली।

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छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण

1861 : 2 नवंबर को मध्य प्रांत का गठन हुआ जिसकी राजधानी नागपुर थी और छत्तीसगढ़ इसमें जिला था।
1862 : 5 संभाग को मध्य प्रांत में बनाया गया जिसमें छत्तीसगढ़ एक स्वतंत्र संभाग बना इसका मुख्यालय रायपुर में स्थित था और इसमें 3 जिले रायपुर, बिलासपुर और संबलपुर थे।
1905 : संबलपुर को बंगाल प्रांत में मिला दिया गया छत्तीसगढ़ का प्रथम मानचित्र बनाया गया और जशपुर, सरगुजा, उदयपुर, चांगभखार एवं कोरिया रियासतों को छत्तीसगढ़ में शामिल कर दिया गया।
1918 : छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वप्नदृष्टा और संकल्पनाहार के रूप में पंडित प्यारेलाल सुंदर ने छत्तीसगढ़ का मानचित्र अपने पांडुलिपि में खींचा।
1924 : रायपुर जिला परिषद के द्वारा संकल्प पारित करके पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग की गई।
1939 : त्रिपुरी अधिवेशन (कांग्रेस) में पंडित सुंदरलाल शर्मा ने पृथक छत्तीसगढ़ की मांग रखी।
1946 : छत्तीसगढ़ निर्माण हेतु प्रथम संगठन छत्तीसगढ़ शोषण विरोध मंच का गठन ठाकुर प्यारेलाल जी के द्वारा किया गया।
1945 : स्वतंत्रता प्राप्ति के समय छत्तीसगढ़ मध्यप्रांत और बरार का हिस्सा था।
1953 : राज्य पुनर्गठन आयोग के सामने छत्तीसगढ़ की मांग की गई।
1955 : मध्य प्रांत के विधानसभा में रायपुर विधायक ठाकुर रामकृष्ण सिंह द्वारा पृथक छत्तीसगढ़ की मांग की गई यही प्रथम विधायी प्रयास था।
1956 : मध्यप्रदेश राज्य का गठन हुआ और छत्तीसगढ़ को मध्यप्रदेश के साथ शामिल किया गया। इसी वर्ष डा. खूबचंद बघेल की अध्यक्षता में राजनांदगांव जिले में छत्तीसगढ़ महासभा का गठन किया गया और इसके महासचिव दशरथ चौबे जी थे।
1967 : डॉक्टर खूबचंद बघेल द्वारा बैरिस्टर छेदीलाल की सहायता से पृथक छत्तीसगढ़ हेतु छत्तीसगढ़ भातृत्व संघ का गठन राजनांदगांव में किया गया जिसके उपाध्यक्ष व्दारिका प्रसाद तिवारी जी थे।
1976 : शंकर गुहा नियोगी जी द्वारा छत्तीसगढ़ हेतु छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा की स्थापना की गई।
1983 : पवन दीवान ने पृथक छत्तीसगढ़ पार्टी की स्थापना की और शंकर गुहा नियोगी ने छत्तीसगढ़ संग्राम मंच का गठन किया।
1994 : तत्कालीन साजा विधायक रविंद्र चौबे द्वारा मध्य प्रदेश विधानसभा में छत्तीसगढ़ निर्माण सम्बन्धी अशासकीय संकल्प प्रस्तुत किया गया और यह सर्वसम्मति से पारित किया गया।
1998 : छत्तीसगढ़ निर्माण के लिए मध्यप्रदेश विधान सभा में शासकीय संकल्प पारित हुआ।
2000 : 25 जुलाई को श्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा लोकसभा में विधेयक प्रस्तुत किया गया और 31 जुलाई विधेयक लोकसभा में पारित किया गया इसके पश्चात 3 अगस्त को राज्यसभा में विधेयक प्रस्तुत किया गया व 9 अगस्त को राज्यसभा में पारित किया गया। 25 अगस्त ही वह दिन था जिस दिन तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायण जी ने मध्‍यप्रदेश राज्‍य पुर्नगठन अधिनियम का अनुमोदित किया।

1 नवंबर 2000 छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस

हमारे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत छत्तीसगढ़ राज्य का गठन किया गया। आज भी इस दिवस को छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस के रूप में बनाया जाता है व विभिन्न स्थानों पर राज उत्सव का भी आयोजन किया जाता है।

||  मध्य प्रदेश से रायपुर संभाग , बिलासपुर संभाग और बस्तर संभाग को अलग कर छत्तीसगढ़ का निर्माण किया गया नवगठित छत्तीसगढ़ में 16 जिले , 96 तहसील और 146 विकासखंड थे इसकी राजधानी रायपुर को चुना गया और उच्च न्यायालय की स्थापना बिलासपुर में की गई जिस कारण बिलासपुर को छत्तीसगढ़ का न्यायधानी कहा जाता है छत्तीसगढ़ विधान सभा की पहली बैठक 14 दिसंबर 2000 से 20 दिसंबर 2000 तक रायपुर में स्थित राजकुमार कॉलेज के जशपुर हाल में हुई  ||

राज्य का नाम छत्तीसगढ़ क्यों पड़ा ?

पूर्व में यहां 36 गढ़ थे जिस कारण इस स्थान का नाम छत्तीसगढ़ पड़ा बाद में गढ़ो की संख्या में वृद्धि होने पर भी इसका नाम छत्तीसगढ़ी रहा छत्तीसगढ़ का इतिहास अति प्राचीन है माना जाता है कि प्राचीन काल में कौशल राज्य होता है जिसे दो भागों में बांटा गया उत्तर कौशल और दक्षिण कौशल उस काल के दक्षिण कौशल को ही आज हम छत्तीसगढ़ कहते हैं रामायण कालीन दंडकारण्य का जंगल भी छत्तीसगढ़ में ही स्थित था।

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पौराणिक ग्रंथों में वर्णित “दंडकारण्य”

छत्तीसगढ़ का वर्णन विभिन्न हिंदू पौराणिक गाथाओं व ग्रंथों में मिलता है उस समय इस क्षेत्र को छत्तीसगढ़ नहीं परंतु दक्षिण कौशल , कोशल प्रदेश या दंडकारण्य वन के नाम से जाना जाता था। जिसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण , मत्स्य पुराण व ब्रह्मपुराण में मिलता है वाल्मीकि रामायण में वर्णित है कि इसी क्षेत्र के सिहावा पर्वत पर ऋषि श्रृंगी का निवास स्थान था जिन्होंने अयोध्या के राजा दशरथ के यहां पुत्र प्राप्ति का यज्ञ किया था। राम ने भी अपने वनवास के दौरान इसी क्षेत्र के कई स्थानों पर निवास किया आमजनों के द्वारा यह भी माना जाता है कि यही कोसला राम की माता कौशल्या की जन्मभूमि थी महाभारत के भीष्म पर्व में भी चित्रोत्पला नदी का वर्णन मिलता है यह नाम महानदी का पुराना नाम है। अन्य धर्मो जैसे बौद्धों के लिए भी यह ऐतिहासिक महत्व रखता है।

“ दंडकारण्य के जंगल
अऊ कोसल के आंगना
देख तोर इंहा रहे आए हे
राम लक्ष्मण के संग मा ।
रामायण के सब्बो कहानी
जिंहा के जमीन मा बसे हे
उहां के गोद मा
सब लईका हा हसे हे ।। ”

साक्ष्य , अवशेष व प्रमाण

छत्तीसगढ़ में कई प्राचीन मंदिर , स्थान , गुफा , इमारत और गढ़ , महल स्थित है जो प्राचीन भारत में छत्तीसगढ़ की महत्वता को दर्शाते हैं अति प्राचीन काल के साक्ष्य के रूप में छत्तीसगढ़ में कई गुफाएं भी मिले हैं यहां की कुटुमसर की गुफा काफी प्रसिद्ध है कबरा पहाड़ गुफा और सिंघनपुर गुफा को पाषाण कालीन मानव इतिहास का प्रमाण माना जाता है। अजंता गुफाओं के समकालीन जोगीमरा की गुफा और रामगढ़ गुफा भी जिसे विश्‍व की प्राचीनतम नाट्यशाला होने का गौरव प्राप्‍त है भी यहां पाए गए हैं अतः छत्तीसगढ़ का इतिहास बहुत पुराना है जिसके साक्ष्यअवशेष भी प्राप्त है और यहीं कवि कालिदास की जन्मभूमि मानी जाती है रामायण कालीन इतिहास के रूप में इसका वर्णन रामायण में मिलता है रामायण के ऐसी कई घटनाएं हैं जो छत्तीसगढ़ के घने वनों में ही घटी है जिसके प्रमाण आज भी प्राप्त है। जिसमें विशेष स्थान सीता बेंगरा की गुफा , किस्किंधा पर्वत , हाथीखोर गुफा , लक्ष्मण बेंगरा की गुफा , रामगढ़ की पहाड़ी और राम झरना है खरौद जो जांजगीर-चांपा में स्थित है को खर दूषण का साम्राज्य माना जाता था और यही लखेश्वर महादेव मंदिर भी है जिसे लक्ष्मण द्वारा स्थापित माना जाता है। महाभारत में भी भीष्म पर्व में चित्रोत्पला ( महानदी का पुराना नाम ) का वर्णन मिलता है। छत्तीसगढ़ का नाम जिन छत्तीस गढ़ो में पड़ा उनमें रतनपुर में 18 अर्थात रतनपुर , मारो , बिजयपुर , खरोद , कोटागढ़ , नवागढ़ , सोंथी , मल्हारगढ़ , मुंगेली सहित पँडरभट्ठा , सेमरिया , चाँपा , बाफा , छुरी , केण्डा , मातिन , उपरौरा , पेण्ड्रा , कुरकुट्टी एवं रायपुर में भी 18 अर्थात रायपुर , पाटन , सिमगा , सिंगारपुर , लवन , अमेरा , दुर्ग , सारडा , सिरसा , मोहदी , खल्लारी , सिरपुर , फिंगेश्वर , राजिम , सिंगनगढ़ , सुअरमाल , टेंगनागढ़ , अकल वारा है। छत्तीसगढ़ में बहुत से ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखने वाले मंदिर जैसे भोरमदेव और दंतेश्वरी मंदिर , रतनपुर का महामाया मंदिर स्थित है जो विभिन्न कालों में छत्तीसगढ़ में हुए शासकों और राजवंशोंप्राचीन श्रेष्ठता को दर्शाते हैं। किसी भी स्थान के इतिहास को जानने के लिए उस स्थान के इतिहास से जुड़े साक्ष्य , अवशेष व प्रमाणों का होना अति आवश्यक है क्योंकि इसके बिना वहां के इतिहास को जानना कठिन हो जाता है और इतिहास ज्ञात होने पर भी साक्ष्यो व अवशेषों के अभाव में इन्हें प्रमाणित करना कठिन हो जाता है हालांकि छत्तीसगढ़ में ऐसे कई प्रमाण है इन मौजूदा साक्ष्य , अवशेष व प्रमाणों के द्वारा हमें यहां के इतिहास के बारे में पता चलता है।

छत्तीसगढ़ में ऐसे कई प्राचीनऐतिहासिक स्थल है जहां पर जाकर हम यहां के इतिहास को जान व महसूस कर सकते हैं और यहां के इतिहास के ऊपर कई किताबें भी लिखी गई है सरकार के द्वारा भी इन स्थलों को संरक्षित रखने व इतिहास को संजोए रखने के प्रयास किए जा रहे हैं छत्तीसगढ़ के गौरवशाली अतीत के परिचायक कुलेश्वर मंदिर राजिम , स्वास्तिक बिहार सिरपुर , सिद्धेश्वर मंदिर पलारी , शिव मंदिर चन्दखुरी और महामाया मंदिर रतनपुर , बत्तीसा मंदिर बारसूर , जगन्नाथ मंदिर खल्लारी , आनंद प्रभु कुटी विहार और भोरमदेव मंदिर कवर्धा सहित पुरातत्वीय दृष्टि से महत्वपूर्ण 58 स्मारक को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया गया हैं जहां आप घूमने हेतु जा सकते हैं इन स्थानों का अपना ऐतिहासिक , धार्मिकसांस्कृतिक महत्व है अतः छत्तीसगढ़ राज्य का इतिहास अति वैभवशाली व प्राचीन है।




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छत्तीसगढ़ का एक ऐसा ऐतिहासिक व सुंदर स्थान जहां आप को लगता है कि सभी को जाना चाहिए का नाम कमेंट करना ना भूलें आपको हमारा ये लेख (आर्टिकल) छत्तीसगढ़ का संपूर्ण इतिहास , स्थापना Complete History of Chhattisgarh in Hindi कैसा लगा , अपनी राय लिखें और यदि आप चाहते हैं कि हम किसी अन्य विषय पर भी निबंध , कविता या लेख लिखे तो आप कमेंट के द्वारा हमें अपने सुझाव व विषय दे सकते हैं।
धन्यवाद ।


छत्तीसगढ़ के इतिहास के कुछ प्रमुख बिंदु

  • पूर्व से ही छत्तीसगढ़ में कई प्राचीन घटनाएं घटी प्रागैतिहासिक कालपाषाण काल में इसका काफी महत्व था।
  • छत्तीसगढ़ में विभिन्न राजवंश का उदयअस्त हुआ अपने कार्यकाल में उन्होंने विभिन्न स्मारको व मंदिरों का निर्माण कराया जिनके अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।
  • भारत में अंग्रेजी शासन के स्थापना के साथ ही छत्तीसगढ़ पर भी अंग्रेजों का शासन हुआ।
  • अंग्रेजी शासन काल में छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता की अग्नि काफी पहले से ही धधक चुकी थी बहुत से स्वतंत्रता सेनानीयों ने इसके लिए प्रयास किए।
  • 15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के साथ छत्तीसगढ़ भी स्वतंत्र हुआ और इसके विभिन्न रियासतों का भारत में विलय हो गया।
  • 1 नवम्बर 2000 को छत्तीसगढ़ की राज्य के रूप में स्थापना हुई।
  • छत्तीसगढ़ विकास के पथ पर निरंतर आगे बढ़ते जा रहा है। 

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