हिरण, कौआ और दुष्ट गीदड़
जंगल में एक कौआ और हिरण रहते थे। वह दोनों अच्छे दोस्त थे। हिरण बहुत सेहतमंद था व अपनी सुंदर त्वचा के कारण बहुत अच्छा दिखता था। वह बहुत ही आनंदी था, सारा दिन जंगल में कुलांचे भरता।
एक दिन, उसे एक गीदड़ ने देख लिया। उसने सोचा - मुझे इस सुंदर जीव का मांस जरूर खाना चाहिए। वह सचमुच काफी मीठा और स्वादिष्ट होगा। दुष्ट गीदड़ ने ऐसा करने से पहले उसे भरोसे में लेने की कोशिश की। एक दिन वह हिरण से बोला - "अरे दोस्त, कैसे हो ?"
हिरण ने तो उसे पहले कभी नहीं देखा था। उसने पूछा - "तुम कौन हो ? मुझे नहीं लगता कि हम पहले कभी मिले हैं ?" "मैं गीदड़ हूं। मैं उस जंगल में अकेला रहता हूं। मेरे साथ खेलने के लिए कोई नहीं है। क्या मुझसे दोस्ती करोगे ?"
हिरण ने झट से उसकी बात मान ली। वह गीदड़ को अपने घर ले गया। वहीं पास में ही उसका पक्का दोस्त कौआ रहता था। कौए ने जब अजनबी को उसके साथ देखा तो पूछा - "प्रिय हिरण, यह कौन है ?" हिरण ने गीदड़ को उस से मिलवाते हुए कहा - "प्रिय कौए, गीदड़ है, यह हमसे दोस्ती करना चाहता है।"
कौआ पल-भर को चुप रहा फिर सब सकुचाते हुए बोला - "मुझे नहीं लगता है कि हमें अजनबीयों से दोस्ती करनी चाहिए।"
कौए की बात सुन गीदड़ चिढ़ कर बोला - "जब तुम हिरण के दोस्त बने थे, तो तुम भी उसे अच्छी तरह नहीं जानते थे। हर- दूसरे को जानने में वक्त लगता है। सालों की दोस्ती के बाद ही तुम पक्के दोस्त बन पाए हो।"
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अब कौए ने कुछ न कहना ही ठीक समझा वह बोला - "जैसी तुम्हारी मर्जी।"
अगले दिन से तीनों अपने-अपने काम में व्यस्त हो गए। दिन में वे भोजन की तलाश में रहते थे तथा रात को एक साथ वक्त बिताते।
कुछ दिन में ही गीदड़ काफी बेचैन हो गया। वह हिरण को मारने के मौके की तलाश में रहने लगा। एक दिन वे दोनों घर में अकेले थे, गीदड़ ने हिरण से कहा - "आओ, तुम्हें मक्का के खेत में ले चलूं। हिरण उसके साथ चला गया। वहां उसने जी भर कर ताजा मक्का खाया।"
जल्दी ही खेत के मालिक ने उसे देख लिया। उसने हिरण को पकड़ने के लिए जाल बिछा दिया। अगले दिन हिरण खेत में आया तो जाल में फंस गया। वह सोचने लगा कि अब मुझे कौन बचाएगा, तभी उसे गीदड़ आता दिखा, वह खुश हो गया। हिरण ने उससे कहा- "प्रिय मित्र! मैं यहां फंस गया हूं, कृपया मुझे जाल से निकालो।"
दुष्ट गीदड़ हिरण को जाल में फंसा देख खुश हुआ व बोला - "ये जाल चमड़े से बना है। मंगलवार को मैं दांतो से चमड़ा नहीं छूता। मैं कल सुबह आकर तुम्हें छुड़ा लूंगा।" इतना कह कर वह झाड़ियों के पीछे जा छिपा।
रात बहुत हो गई। हिरण घर नहीं लौटा तो कौए को चिंता होने लगी। वह उसकी तलाश में निकला। काफी खोजने के बाद उसने हिरण को मक्का के खेत में, जाल में फंसा पाया। वह उसके पास जाकर बोला - "दोस्त, ये क्या हुआ ?" हिरण को कौए की सलाह न मानने का अफसोस था, उसने कहा - "यह इसलिए हुआ, क्योंकि मैंने तुम्हारी बात नहीं मानी। तुमने ठीक कहा था, मुझे गीदड़ पर भरोसा नहीं करना चाहिए था।" "पर वह है कहां ?" कौए ने पूछा।
हिरण ने रोते हुए कहा - "कहीं छिपा, मेरे मरने का इंतजार कर रहा होगा।"
कौए ने उसे दिलासा देते हुए बंधन से मुक्त होने की सलाह दी। हिरण ने दोस्त की सलाह मानी। उसी सलाह के मुताबिक, जब खेत का मालिक हिरण को मरा देख जाल खोलने लगा, तो मौका पाते ही हिरण वहां से निकल भागा।
गुस्से में मालिक ने उस पर लाठी खींच मारी। वह लाठी गीदड़ को जा लगी, जो हिरण का पीछा करने की कोशिश कर रहा था। दुष्ट गीदड़ की वही मौत हो गई।
शिक्षा :- सच्चा दोस्त वही होता है, जो मुसीबत में काम आए।
बूढ़ा बाघ और सोने का कंगन
बहुत समय पहले की बात है, जंगल में एक बाघ रहता था। वह इतना बूढा़ हो गया था कि शिकार करने नहीं जा सकता था। एक दिन तालाब के किनारे टहलते समय उसने सोने का कंगन पाया। उसने झट से उसे उठा लिया व सोचा कि कंगन की मदद से किसी को भी जाल में फांसा जा सकता है।
एक दिन, एक मुसाफिर वहां से गुजरा। उसे देख कर बाघ ने सोचा - यह कितना स्वादिष्ट भोजन बन सकता है! वह पंजे में कंगन थाम कर जोर से बोला - "मेरे पास सोने का कंगन है। मुझसे दान में ले लो।"
मुसाफिरसोने का कंगन पाना चाहता था। उसने सोचा कि उसे पाकर मैं अमीर हो जाऊंगा, पर जंगली जानवर के पास जाना भी खतरे से खाली नहीं है। इसलिए उसने बाघ से कहा - "मैं तुम्हारे पास आया तो तुम मुझे मार डालोगे।"
चतुर बाघ ने मासूमियत से कहा - " मित्र, बेशक में अपनी जवानी में काफी निर्दयी और दुष्ट था, लेकिन अब मैं सिर्फ दान देता हूं। वैसे भी काफी बुरा हूं। मेरे पंजे और दांत भी इतने तीखे नहीं रहे इसलिए तुम्हें मुझसे डरने की जरूरत नहीं है।"
लालची मुसाफिर ने उस पर भरोसा कर लिया। बाघ को भी यह देख कर खुशी हुई कि मुसाफिर उसकी बातों में आ गया। उसने मुसाफिर को सलाह दी कि दान लेने से पहले उसे स्नान कर लेना चाहिए। ज्यों ही मुसाफिर स्नान करने पानी में उतरा, वह दलदल में फंस गया। उसने तालाब से निकलने की काफी कोशिश की पर असफल रहा।
बाघ ने उस पर दया दिखाने का दिखावा करते हुए कहा - " हे भगवान, तुम यहां फंस गए। कोई बात नहीं, मैं अभी तुम्हें बाहर निकालता हूं।"
यह कह कर वह आगे आया और मुसाफिर को पंजो से पकड़ कर किनारे, तक खींच लाया। अब तक उस व्यक्ति को बाघ की चलाकी समझ आ गई थी। उसने सोचा-मुझे इस जंगली जानवर पर भरोसा नहीं करना चाहिए था। लालच ने मुझे डुबोया, अब ये जरूर मुझे मार देगा। लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। बाघ ने उस पर झपट्टा मारा व उसे मार कर खा गया।
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