बिल्ली का न्याय
एक बड़े पीपल के पेड़ के खोल में कठफोड़वा रहता था। वह वहां कई साल से रह रहा था। पड़ोस में रहने वाले सभी पशु-पक्षियों से उसकी दोस्ती थी।
एक दिन कठफोड़वा अपना घर छोड़ कर भोजन की तलाश में निकला। काफी लंबा सफर तय करके वह मक्का के खेत में पहुंचा। फसल कटने का समय था। मक्का की फसल कटने को तैयार थी। वह खेत में ही रहा और कई दिन तक पेट भर कर खाया।
जब कठफोड़वा गया हुआ था तो एक नन्हा खरगोश घर की तलाश में आया और उसके घर में रहने लगा।
जब कठफोड़वा अपने घर लौटा तो उसने वहां खरगोश को मजे से गाजरें खाते देखा। उसे देखते ही कठफोड़वा गुस्से से चिल्लाया।" यह घर मेरा है "
"तुम्हारा घर ?" खरगोश बोला- " यह तो मेरा है। मैं यहां कई दिन से रह रहा हूं।
"तुम यहां नहीं रह सकते। यह घर मैंने बनाया है और हमेशा से इस में रहता आया हूं। मेरे पड़ोसियों से पूछ लो।"
पर खरगोश ने उसकी एक न सुनी। वह उल्टा चिल्लाया- "मैं किसी से क्यों पूछूं ? जब मैं यहां आया तो जगह खाली थी, इसलिए मैं रहने लगा।"
"अब मैं यह घर नहीं छोड़ सकता।" दोनों में जबरदस्त लड़ाई होने लगी। पड़ोसी भी झगड़ा नहीं सुलझा सके।
अंत में उन्होंने उस बूढ़ी बिल्ली के पास जाने का फैसला किया जिसे काफी सयाना माना जाता था। वह गंगा नदी के किनारे रहती थी। उसने दोनों को अपने पास आते देखा तो आंखें मूंद कर, जप करने बैठ गई।
कठफोड़वा और खरगोश उससे डर के मारे थोड़ी दूर ही बैठ गए। उन्हें उसके पास जाने से डर लग रहा था- "बिल्ली ने आंखें खोली तो कठफोड़वा बोला- "खरगोश और मेरी लड़ाई हो गई है। हमारी कहानी सुनकर, सही न्याय करें। जिसे दोषी माने, उसे सजा दे।"
वह मीठी आवाज में बोली। "प्यारे बच्चों! ऐसी बुरी बातें मत कहो। हरिद्वार से आने के बाद मैंने खुद को भगवान के चरणों में सौंप दिया है इसलिए किसी को सजा देने की बात मैं सोच भी नहीं सकती। मुझे बताओ, किस बात का झगड़ा है?"
कठफोड़वा कहानी सुनाने लगा तो दुष्ट बिल्ली बोली- "प्यारे! मैं बूढ़ी हो गई हूं। इतनी दूर से तुम्हें सुन नहीं सकती। दोनों थोड़ा-सा पास आकर बैठो।"
वे दोनों उस पर भरोसा रखते हुए थोड़ा पास आ गए। इससे पहले कि उन्हें एहसास होता, बिल्ली ने उन पर झपट्टा मार दिया। उसने उन्हें तीखे पंजों से मार दिया और खा गई।
शिक्षा:- " दुष्ट अपना बाहरी रूप-रंग चाहे कितना भी बदल ले, लेकिन अपनी दुष्टता कभी नहीं छोड़ते। ऐसे लोगों से हमें बच कर रहना चाहिए।"
चतुर खरगोश
बहुत समय पहले की एक निर्दयी शेर जंगल का राजा था। वह अपने भोजन के लिए कई जानवरों को मार देता। जंगल के सभी जानवर उससे भयभीत रहते।
एक दिन सभी जानवर उसके पास एक सुझाव लेकर गए। उनमें से सबसे चालाक लोमड़ी ने प्यार से कहा- "महाराज! आप हमारे राजा हैं। हम आपके सेवक है। हमारा एक सुझाव है। आप बूढ़े और कमजोर हो रहे हैं, तो आप घर पर ही क्यों नहीं रहते। हम वादा करते हैं कि एक जानवर रोज आपका भोजन बनने के लिए पहुंच जाएगा। अब आपको और शिकार नहीं करना पड़ेगा। हम भी चैन से रहेंगे।"
शेर को सुझाव पसंद आ गया। वह गरजा- "अगर तुम जानवर नहीं भेज सके तो मेरी जितनी मर्जी होगी, उतने जानवरों को मार कर अपना भोजन बनाउंगा।"
जानवरों ने कहा- "महाराज! हम अपना वचन निभाएंगे।"
उस दिन से हर रोज एक जानवर शेर की गुफा में जाता वह शेर उसे खा लेता। एक दिन खरगोशों की बारी थी, एक छोटे खरगोश को जाने के लिए कहा गया। वह बहुत चतुर था। उसे या बिल्कुल पसंद नहीं था कि शेर सब को मार कर खाता रहे। गुफा की ओर जाते समय उसने बचने का उपाय खोज ही लिया। वह वहां धीरे-धीरे चलते हुए, काफी देर से पहुंचा।
शेर काफी गुस्से में था, खाने के लिए छोटा सा खरगोश देखते ही उसका गुस्सा और भड़क गया। वह गरजा- "तुम्हें किसने भेजा? तुम मेरे खाने के लिए काफी छोटे हो और देर से भी आए हो। मैं बहुत भूखा हूं।"
नन्हें खरगोश ने सलाम ठोका- "महाराज! कृपया, मेरी बात सुने। मेरे साथ पांच और खरगोश भेजे गए थे पर रास्ते में एक शेर मिला, उसने उन्हें खा लिया। उसने कहा कि वह जंगल का राजा है। मैं किसी तरह बच कर निकल आया।" "दूसरा शेर!!! कहां है वह?" शेर दहाड़ा। खरगोश शेर को जंगल में बने हुए एक कुएं के पास ले गया। "वहां है.... उस किले में रहता है। आपको इस तरह आता देख, छिप गया!" खरगोश ने एक कुएं की ओर इशारा किया।
खरगोश ने शेर को नीचे की ओर देखने को कहा। शेर ने पानी में देखा तो उसे अपनी परछाई दिखी। वह गुस्से से दहाड़ा। कुएं से और भी जोर से दहाड़ने की आवाज आई। अपनी ही दहाड़ की गूंज सुन कर शेर को लगा कि दूसरा शेर दहाड़ रहा है।
वह दुश्मन को मारने के लिए कुएं में कूद गया। वह कुएं में डूब गया और बाहर नहीं निकल सका।
चतुर खरगोश खुशी-खुशी घर लौट गया। उसने अपनी हिम्मत और चतुराई से जानवरों की जान बचा ली थी।
शिक्षा:- "बल से बुद्धि श्रेष्ठ है।"
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