पक्षी व मूर्ख बंदर
एक नदी के किनारे विशाल वृक्ष था। इसकी शाखाओं पर अनेक पक्षी घोंसले बनाकर रहते थे। वृक्ष की घनी शाखाएं उन्हें वर्षा की बूंदों व सूरज की धूप से सुरक्षित रखती थी।
एक दिन आकाश में बादल छा गए वह देखते ही देखते जोरों से वर्षा होने लगी। पक्षी घोंसले में जा छिपे। पेड़ के आस - पास खेल रहे कुछ बंदर पानी से भीग गए और पेड़ के नीचे बैठे सब ठंड से कांपने लगे।
उन्हें देखकर एक पक्षी बोला - "प्यारे भाइयों! अगर तुमने पहले ही हमारी तरह कोई घर बना लिया होता, तो तुम्हें सर्दी में इस तरह ठिठुरना न पड़ता। हालांकि हम छोटे हैं पर फिर भी अपनी चोंच से घोंसले के लिए तिनके बटोरते हैं। तुम्हें तो भगवान ने दो-दो हाथ-पैर दिए हैं, तुम तो आराम से अपना घर बना सकते हो। यह सर्दी, गर्मी व धूप से तुम्हारी रक्षा करता।"
बंदरों को पक्षी की यह सलाह पसंद नहीं आई। वे चिढ़ गए, उन्हें लगा कि पक्षी उनका मजाक उड़ा रहे हैं। वह यह सोच कर क्रोधित होने लगे कि ये नन्हे जीव हमारी खिल्ली उड़ाते हैं, हमें सबक सिखाते हैं क्योंकि इनके पास अपना घर है। उनमें से एक बोला - " बारिश रुकने दो, हम तुम्हें बताएंगे कि हम अपना घर कैसे बनाते हैं।"
जैसे ही बारिश रुकी, बंदर पेड़ पर चढ़े व सभी पक्षियों के घोंसले नष्ट कर दिए। उन्होंने उनके अंडे फोड़ दिए वह नन्हे बच्चों को पेड़ से धकेल दिया।
बेचारे पक्षी बंदरों का ऐसा बर्ताव देख कर दंग रह गए। वह यहां-वहां उड़ने लगे। उन्हें पछतावा व एहसास हुआ कि मूर्ख बंदरों को सलाह नहीं देनी चाहिए थी।
शिक्षा :- जब तक मांगी या पूछी ना जाए, हमें कोई भी सलाह नहीं देना चाहिए।
बेवकूफ गधा
बहुत समय पहले की बात है, बेला नामक एक गांव में एक धोबी रहता था। वह काफी स्वार्थी और निर्दयी था। उसके पास एक गधा था, जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक का कपड़े लाद कर ले जाता था। गधा दिन-रात कड़ी मेहनत करता पर मालिक उसे कभी भर-पेट खाना नहीं देता था। इसका नतीजा यह हुआ कि, गधा दिन ब दिन कमजोर होता गया।
अब धोबी को गधे की इस हालत को देखकर चिंता होने लगी, पर वह गधे की खुराक पर पैसे खर्च नहीं करना चाहता था। उसने गधे को खाना खिलाने का नया तरीका खोज लिया। वह कहीं से चीते की खाल ले आया और उसे गधे के आस-पास लपेटकर उसे पड़ोसियों के खेत में चरने के लिए छोड़ दिया।
खेत के मालिकों को लगा कि सचमुच वहां कोई चीता घुस आया है। वह डर के मारे खेतों से भाग खड़े हुए। अब तो गधा हर रात चीते की खाल में, खेतों में घुस जाता और पेट भर कर खाता।
जल्दी ही वह मोटा-ताजा हो गया। उसका धोबी खुश था कि उसे गधे पर कोई पैसा नहीं खर्च करना पड़ा, पर खेतों के मालिक काफी परेशान थे। गधा हर रात उनकी काफी फसल बर्बाद कर देता था।
एक खेत के मालिक ने तय किया कि वह चीते को मार देगा। वह हल्के भूरे रंग का कंबल लपेट कर खेत के कोने में छिप गया और हाथ में धनुष-बाण ले लिया।
अगली रात, जब गधा खेत में आया, तो उसने कंबल में लिपटे व्यक्ति को गधा समझ लिया। अपने साथी को वहां देख उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह जोर-जोर से रेंकने लगा।
रेंकने की आवाज सुनते ही खेत का मालिक पहचान गया कि हो न हो चीते के खाल में गधा छिपा है। उसका सारा डर निकल गया। उसने गधे पर तीरों की बौछार कर दी। गधा बुरी तरह घायल हो गया और दर्द से तड़पते हुए जान दे दी।
शिक्षा :- हमें कभी भी हड़बड़ी नहीं मचानी चाहिए। कुछ भी कहने या करने से पहले सोचना ज़रूर चाहिए।
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धन्यवाद ।
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