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लद्दाख की पर्वत - कविता Laddakh ki Parwat - Poem in Hindi


बैठा हूं मैं उस पत्थर पर
जो चोटी के ऊपर है
दिखे दूर दूर तक यहां से
चारों तरफ जो बर्फ ही बर्फ है
विशाल विशाल पर्वत यहां पर
आनंद लूं मैं यहां बैठकर
तुलना करूं मैं किससे इसकी
इस लद्दाख की पर्वत पर ।।१।।


पहुंच सका ना हर कोई यहां पे
कुछ उस शहर में ही रह गए
कुछ जो निकले यहां पे
सिर्फ प्रसिद्ध जगह पे ही फंस गए
फिर कुछ लोगों ने सोचा ऐसे
क्यों ना देखें कुछ अनदेखा जैसे
उन्होंने ऐसी जगह खोजी
जो ना पहले देखा कोई ।।२।।


था मैं भी वैसा ही बंदा
सोचा देखूं कुछ अनदेखा
खोजते खोजते हाथ हो गई
पर कुछ ना मिला मुझे अलग
खत्म होने वाले थे दिन मेरे
करने कि मुझमें थी कुछ ललक
क्या मैं कर पाया कुछ हरकत
इस लद्दाख पर्वत पर ।।३।।


काली रात में एक बत्ती चमकी
अंधेरे रास्ते पर हेडलाइट जैसी
मिले मुझे एक वृद्ध दादा
कहा चलो मेरे संग सखा
मैंने भी फिर हामी भर दी
दूसरे दिन हमने चढ़ान चढ़ी
चढ़ते चढ़ते मुझे थकान लगी ।।४।।


अंधेरे रास्तों पर मै ना चढ़ सका
पर वो चाढ़े जैसे परिंदा
आधी रात को हम वहां पे पहुंचे
हालात खराब थी जैसे तैसे
मैंने सोचा हमें क्या ही दिखेगा
इतना ऊपर क्या ही मिलेगा
पर मैं हुआ गलत जहां पर
इस लद्दाख की पर्वत पर ।।५।।


सो गया मैं थक कर लेट कर
पर वह दादा बैठे रहे वहीं पर
धीरे-धीरे जब चांद ढला
प्रकृति ने हमेशा कुछ कहा
आंखों में पड़ने लगी मेरे
सूरज की सुनहरी किरण
पर रोका था उन्हें कुछ ऐसे
विचार त्रिभुजाकार आकार जैसे ।।६।।


देख कर उसे मैं उठकर बैठ गया
धीरे-धीरे उस चीज में खो गया
पहले ही बता दूं
उसे पूरी तरह बयां नहीं कर पाऊंगा
पर कुछ चित्र तो
आप तक जरूर पहुचाऊंगा
सुनहरी किरणें बढ़ने लगी हर पल
इस लद्दाख की पर्वत पर ।।७।।


सामने कई चोटिया है मेरे
जो बरफों से ढकी हुई है
पर सबसे बड़ी सामने है मेरे
जो लगता कुछ अलग नयी है
बीच में हम दोनों के खाई हैं
पर फिर भी मैंने उसे पाया है
ऐसा लग रहा है जैसे
इसने ही हमें यहां बुलाया है ।।८।।


ठंडी ठंडी हवा यहां पर बह रही
जो हमारे कानों में कुछ कह रही
नीला साफ आसमान है
सामने चमकता सूर्य भी विद्यमान है
नीचे छोटी सी एक जल की धारा है
पर गहराई जैसे कई बासो की यात्रा है
क्या मैं बता पाऊंगा इस चित्र को लगभग
लद्दाख की इस पर्वत पर ।।९।।


ऐसा लगे जैसे यहीं बस जाऊं
मैं यहां पहुंचकर बिल्कुल नहीं पछताऊं
दूर-दूर तक इस पर्वत की श्रृंखला को
निरंतर देखता ही देखता जाऊं
पर मन ना भरे मेरा कोई
और मैं इसे बाकियों को कैसे दिखाऊं
क्या तुम जाना चाहोगे मेरे साथ कल
इस लद्दाख की पर्वत पर ।।१०।।


प्रसंग - प्रस्तुत पघांश में कवि अपनी लद्दाख यात्रा के उस समय का वर्णन करता है जब वह एक ऊंची पहाड़ की चोटी पर बैठा हुआ है वह कविता में यहां क्यों व कैसे आये और अपने सामने के सुंदर दृश्य का अपनी कविता में वर्णन करता हैं ।

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अर्थ - मैं एक पहाड़ की चोटी के ऊपर के पत्थर के ऊपर बैठा हूं जिससे दूर-दूर तक दिखता है और चारों तरफ बर्फ है यहां बड़े-बड़े पर्वत हैं जिसका मैं बैठकर आनंद लेता हूं इसकी तुलना में किसी से नहीं कर सकता और मैं इस लद्दाख की पर्वत पर बैठा हूं ।।1।।
इस स्थान पर हर कोई नहीं पहुंचा है क्योंकि कई लोग सिर्फ शहर में ही रहते हैं और जो कुछ यहां निकले हैं वह भी सिर्फ प्रसिद्ध जगह ही जाते हैं फिर कुछ लोग चाहते हैं कि वह कुछ ऐसा देखें जिसे पहले किसी ने नहीं देखा तो उन्होंने ऐसी कई जगह खोजी है जो पहले किसी ने नहीं देखा ।।2।।
मैं भी उन लोगों में से ही एक हूं जो कुछ अनदेखा देखना चाहते हैं मुझे ऐसा स्थान खोजते खोजते रात हो गई थी पर मुझे कुछ अलग नहीं मिला था मेरे यहां दिन भी खत्म होने वाले थे पर मुझे कुछ करने की ललक थी क्या मैं कुछ कर पाया यहां इस लद्दाख के पर्वतों पर ।।3।।
आधी और अंधेरी रात में एक बत्ती चमकी जो मेरे लिए ऐसा था जैसे अंधेरे रास्ते पर किसी गाड़ी की हेडलाइट , मुझे एक बुजुर्ग व्यक्ति मिले जिन्होंने कहा कि मेरे साथ चलो दोस्त और मैंने भी उनके साथ चलना स्वीकार किया फिर इसके बाद सिर्फ हम अपने मंजिल से कुछ ही दूर थे दूसरे दिन हमने पहाड़ चढ़ना शुरू किया और मैं पहाड़ चढ़ते चढ़ते थक गया था । ।।4।।
अंधेरे रास्तों में मुझे चढ़ने में दिक्कत आ रही थी पर वह बुजुर्ग व्यक्ति बहुत तेज पक्षी जैसे चल रहे थे इसके बाद आधी रात को हम वहां पहुंचे पर मैं वहां जैसे तैसे पहुंचा और मेरी हालत भी खराब थी फिर मुझे लगा कि यहां आकर मुझे कुछ अच्छा नहीं दिखेगा इतनी ऊपर मैं बेकार में आया पर फिर उसके बाद लद्दाख के उस पहाड़ पर मैं गलत था ।।5।।
मैं चढ़ाई से थक गया था इसलिए मैं सो गया लेकिन वह बुजुर्ग वहीं बैठे रहे धीरे-धीरे सूर्योदय होना प्रारंभ हो गया और ऐसा लगा जैसे प्रकृति हमसे कुछ कह रही हो मेरे आंखों में सूरज का प्रकाश पड़ने लगा पर इस रोशनी को कुछ रोक रहा था मुझे वह नींद में होने के कारण ठीक से नहीं दिखा पर वह कुछ बड़ा सा त्रिभुज के आकार का जैसा दिख रहा था ।।6।।
जब मैंने उसे देखा तो मैं नींद से उठ कर बैठ गया और धीरे-धीरे उस दृश्य को देखते देखते खो गया और मैं आपको बताना चाहता हूं कि उस दृश्य का मैं ठीक से पूरा वर्णन तो नहीं कर पाऊंगा पर उस दृश्य की झलक आपको बताने की कोशिश कर रहा हूं उस समय उस लद्दाख के पर्वत पर हमारे ऊपर सुनहरी रोशनी पढ़ रही थी ।।7।।
मेरे सामने कई पहाड़ों की चोटिया है जो बर्फ से ढकी हुई है और सबसे बड़ा पहाड़ मेरे सामने हैं जो बाकियों से अलग है और वह नया दिख रहा है हम दोनों पहाड़ों के बीच बहुत गहराई हैं पर फिर भी मुझे ऐसा लग रहा है जैसे हम जुड़े हुए हैं हमें तो ऐसा लग रहा है जैसे इस स्थान में ही हमें अपने आपको देखने के लिए बुलाया है ।।8।।
यहां पर ठंडी ठंडी हवा बह रही है जिसकी आवाज हम अपने कानों से सुन सकते हैं यहां नीला आसमान है और सामने सूर्य चमक रहा है नीचे एक छोटा सा पानी भी बह रहा है लेकिन गहराई यहां कई बासों से भी ऊपर है क्या मैं इस लद्दाख के पर्वत के चित्र को सही से बता पाऊंगा ।।9।।
मुझे ऐसा लग रहा है कि काश मैं यहीं पर बस जाऊं और मैं यहां पर आकर बिल्कुल भी नहीं पछता रहा हूं यहां से दूर दूर तक सिर्फ पर्वत की श्रृंखला ही दिख रही है जिसे मैं देखता ही जा रहा हूं पर मेरा मन नहीं भर रहा है और मैं चाहता हूं कि मैं इसे दृश्य और पहाड़ों , नदियों को दूसरों को भी दिखाऊं क्या तुम मेरे साथ जाना चाहोगे यहां लद्दाख के पहाड़ में ।।10।।




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