लोकमत की कड़ियों के बंधनो को क्षीण कर मैं पंख तैयार कर सफलता रूपी इन बादलों को पाकर मैं यूं ना हारकर तोडुंगा मैं उन कड़ियों को जिसने रोका मुझे उड़ान से अपनी बातों अपने प्रभाव अपनी रूढ़िवादी विचार से रह गया हूं मैं अकेला अपने उस निराश विरह में क्योंकि किसी ने कुछ बोला था पुरानी रीति के समक्ष में मार्ग मेरा था प्रशस्त प्रख्यात पर समय था कुछ अधिक उस समय की विद्यमानता में मार्ग क्षीण करने की कोशिश। यह मार्ग अर्थहीन है सूखे वृक्ष सम क्षीण है ना करो तो ही सही है कर कर भी सब विहीन है विचार जो थे उनके द्वारा पल पल मुझपर थोपते थे ना चाहु लेना उन्हें मैं पर फिर भी मन में मचलते थे । मुख द्वार से निकले उनके जो कटु शब्द जाल भेद दिया उन्होंने मुझे छोड़ना पड़ा अपना प्रख्यात मार्ग पर अब किसी नवयुवक को मैं नहीं रूकने दूंगा कड़ी रूपी उन जालों में ना अकेला अस्थिर झुकने दुंगा मार्ग के पग पग को जीणोद्धार सबल सरल करू नए लोकमत के कार्यो में नव धारा को प्रबल करू बंधन तोड़ इस पुर जीवन का आगे बढ़ कर योगदान दे दु इन लोकमत की पुर बेड़ियों को वृहद विचार कर , मैं भेद दु जीत हार कर मैं भेद दु मै
छत्तीसगढ़ की महान कला एवं संस्कृति कला , संस्कृति की वाहिका है जिस प्रकार भारत की कला में भिन्नता है उसी प्रकार छत्तीसगढ़ की कला एवं संस्कृति भी बहुआयामी है वनों से आच्छादित व आदिवासी अधिकता के कारण यहां की कला में वनों , प्रकृति , प्राचीन और परम्परा का विशेष स्थान व महत्व है। छत्तीसगढ़ की कला में हमें विभिन्न प्रकार के लोक नृत्य , जातियां , लोक कला , मेले , विभिन्न भाषा , शिल्प और विशेष व्यंजन देखने को मिलते हैं। प्रदेश में यहां के आभूषणों , वस्त्रों का विशेष स्थान है जो यहां की संस्कृति को और प्रभावशाली व समृद्ध बनाती हैं सरल जीवन जीते हुए यहां के लोग अपनी परम्परा , रीति रिवाज और मान्यताओं का पालन करते है। समय-समय पर ऋतुओं , तिथि और त्योहार अनुसार विभिन्न उत्सवों और संस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है प्रत्येक गांव, जिले, क्षेत्र की अपनी अलग मान्यताएं, पहचान व धार्मिक महत्व हैं। माना जाता है कि कला का प्राण है रसात्मकता। रस अथवा आनन्द अथवा आस्वाद्य। कला के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संस्कृति व परम्पराओं का प्रदान होता है छत्तीसगढ़ की कला जहाँ एक ओर त